वक्त दौड़ते एहसासों की तरह है। दौड़ जो मुमकिन है, नहीं है। मुश्किल दौर, विषादों की चटाई के कोने जो घिसटते ख्वाबों की याद दिलाते हैं। बेशक परछाइयों ने आना-जाना अभी छोड़ा नहीं। हां, है हैरानी मुझे। हो भी क्यों न; साये अब भी पीछा करते हैं।
रिश्तों की गुंजाइश के वही चार कदम। और कितने, और कितने रास्ते। शायद मंजिल एक दस्तूर है जो आड़ी-तिरछी पगडंडियों की करवटों को ही सिरहाना समझ बैठी है।
मेरी खामोशी नींदों के दरमियां उलझ गयी। धुनें चार थीं, कहीं गीलापन, कहीं ओस से तर हरियाली। हां, छांव अब बरकत नहीं करती। समझदार उदासी है जिसे मन को तो पढ़ना आता है।
यह डोर है। जीवन की चारपाई है। होश में है जो जिसने कंबलों के रेशों को गिना है। हां, परतें जरूर ऐंठ रही हैं। कशमकश है, सिहरन है, सन्नाटा है, लेकिन जिंदगी सांस ले रही है। क्या यही नहीं है काफी समझाने के लिये कि रूक जाता है वह सब जो ठहर गया है।
हां, वह उम्र से लड़ रहा है, भिड़ रहा है। यत्न जारी रहेगा क्योंकि उसने सीख लिया। जान लिया कि जिंदगी की चौखट से बाहर कदमों के निशान बदलेंगे।
मैं महसूस कर रहा हूं कि उसने जिंदगी की पुरवाई से नाता जोड़ लिया। दिख रहा है उन कमजोर, धुंधली आंखों में कि कांच भी रिसता है। हां, तस्वीरें स्याह नहीं हैं, उनमें उत्साह नहीं है। मगर लौ अभी बाकि है!
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
रिश्तों की गुंजाइश के वही चार कदम। और कितने, और कितने रास्ते। शायद मंजिल एक दस्तूर है जो आड़ी-तिरछी पगडंडियों की करवटों को ही सिरहाना समझ बैठी है।
मेरी खामोशी नींदों के दरमियां उलझ गयी। धुनें चार थीं, कहीं गीलापन, कहीं ओस से तर हरियाली। हां, छांव अब बरकत नहीं करती। समझदार उदासी है जिसे मन को तो पढ़ना आता है।
यह डोर है। जीवन की चारपाई है। होश में है जो जिसने कंबलों के रेशों को गिना है। हां, परतें जरूर ऐंठ रही हैं। कशमकश है, सिहरन है, सन्नाटा है, लेकिन जिंदगी सांस ले रही है। क्या यही नहीं है काफी समझाने के लिये कि रूक जाता है वह सब जो ठहर गया है।
हां, वह उम्र से लड़ रहा है, भिड़ रहा है। यत्न जारी रहेगा क्योंकि उसने सीख लिया। जान लिया कि जिंदगी की चौखट से बाहर कदमों के निशान बदलेंगे।
मैं महसूस कर रहा हूं कि उसने जिंदगी की पुरवाई से नाता जोड़ लिया। दिख रहा है उन कमजोर, धुंधली आंखों में कि कांच भी रिसता है। हां, तस्वीरें स्याह नहीं हैं, उनमें उत्साह नहीं है। मगर लौ अभी बाकि है!
-हरमिन्दर सिंह चाहल.