विचार, सवाल और जीवन

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विचारों की गहरी नदी बहती रहती है। सिलसिला थमता नहीं। विचार ऐसे ही होते हैं। यह उनकी प्रकृति है। मैं खुद से कई बार ढेरों सवाल कर बैठता हूं। सवाल जिनके जबाव मैं तलाश नहीं पाता, वे फिर मेरे जहन में उठते हैं, उबलते हैं। हां, बार-बार, अनेक बार ऐसा होता है क्योंकि यह प्रक्रिया उतार-चढ़ाव युक्त है।

मैं खुद से नहीं कहता कि विचारों का समागम न हो। न मैं यह कह पाता कि सवाल न उचरें। वो कहते हैं न कि मन का क्या, विचारों का क्या और सवाल तो सवाल हैं। जब लहरें उठती हैं, जब बादल गरजतें हैं तो क्रिया स्वाभाविक है। सही मायने में यह जीवन ही तो है। हां, यह जीवन है।

खामोशी का भी मतलब है। मतलब हर उस चीज का है जो हमसे जुड़ी है। सबसे खास बात यह है कि अर्थ वाला वह सब है जो जीवन से नाता रखता है।

जीवन के रंगों में अनंत विषय हैं। चमक लिए, फीके, उतावले, थके, शर्माये हुए और न जाने कितनी तरह के रंग। सचमुच रंगों में जीवन बसता है। मैं कुछ पल सोचता हूं कि जीवन बदलाव से भरा है। उम्र एहसासों से युक्त है। बुढ़ापा जीवन का सार है।

जीवन-मरण और जवानी-बुढ़ापा। जन्म लिया, जवान हुए, बूढ़े हुए और मृत्यु।

मुझे कई बार लगता है कि जीवन का निष्कर्ष नहीं। इसी तरह बीज रोपा जाता रहेगा, उगेगा, जियेगा और मरेगा। आखिर में सवाल उठेंगे जिनके उत्तर की खोज जारी रहेगी। जारी रहेगा वह सब जो जीवन को गति प्रदान करता है। वह सब जो रोशनी के साथ अंधेरे का वजूद बताता है। यकीन है, नहीं भी, लेकिन तथ्य प्रस्तुत किये जाते रहेंगे।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.

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